इस कहानी का शीर्षक पाठक को कुछ अटपटा अवश्य लगेगा लेकिन आज की गणतांत्रिक व्यवस्था में इन तीनों का अपना महत्व है। हमारा संविधान राजनैतिक कार्यपालिका को शीर्ष स्थान देता है। प्रशासन भी कार्यपालिका का ही भाग है जो जनता द्वारा चुने हुए राजनीतिज्ञों के वैधानिक निर्देशानुसार कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन कभी कभी इस व्यवस्था में कुछ कठिनाइयां पैदा हो जाती है।
राजनीतिज्ञों द्वारा लिए गये अधिकतर निर्णय इस बात पर निर्भर करते हैं कि इन्हें जनता कितना पसंद करती है, क्योंकि उन्हें हर 5 वर्षों में जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिए चुनाव में भाग लेना पड़ता है। इसलिए जनता की पसंद, अक्सर क़ानून पर भारी पड़ जाती है। अतः राजनीतिज्ञ ऐसे व्यक्तियों की तरफ़ विशेष ध्यान देते हैं जो किसी भी कारण से जनता में लोकप्रिय हो। यह उनकी विवशता बन जाती है।
सर्वविदित है कि भारत में साधू, संत, महात्मा, कथा वाचक, एवं बाबाओं की बहुतायत है। इन महानुभावों के अनुयायी भी भारी संख्या में होते हैं। कुछ के तो लाखों में है। अतः राजनीतिज्ञ इन को अनदेखा नहीं कर सकते। स्थिति का लाभ उठा कर कुछ बाबा लोग अनुचित माँगे भी कर बैठते हैं। और कई बार इस प्रकार की अनुचित माँगे प्रशासन को दुविधा में डाल देतीं हैं।
घटना उस समय की है जब मैं पुलिस अधीक्षक (SP) के रूप में जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश में सेवारत था। एक दिन मुझे रात्रिभोज के लिए ज़िलाधीश के घर जाना था। शाम क़रीब 8 बजे मैं अपने घर से तैयार होकर ज़िलाधीश के घर के लिए निकला। जब गांधी चौक के पास पहुँचा तो देखा कि एक गाड़ी इस प्रकार से खड़ी थी जिससे यातायात में बाधा उत्पन्न हो रही थी। उस स्थान पर सड़क थोड़ी तंग है और यह नो पार्किंग ज़ोन भी है। गांधी चौक, मंडी शहर का एक प्रसिद्ध स्थल है जहाँ अक्सर बहुत चहल पहल रहती है, विशेष तौर पर शाम के समय। उपरोक्त वाहन के कारण सड़क पर जाम की स्थिति पैदा हो गई थी जो पैदल चलने वालों के लिए भी काफ़ी असुविधा जनक थी।
मैंने ड्राइवर को रुकने के लिए कहा और अपने अंगरक्षक को चौक पर खड़े पुलिस अधिकारी को बुलाने भेजा। यह एक सहायक उपनिरीक्षक (ASI) थे जो सिटी पुलिस चौकी प्रभारी थे। मैंने कड़े शब्दों में उन्हें आदेश दिया कि उक्त गाड़ी को शीघ्र वहाँ से हटवा लें। साथ ही पूछा कि किसकी गाड़ी है। सहायक उप निरीक्षक संतराम (काल्पनिक नाम) ने बताया कि यह गाड़ी संत आसाराम बापू के अनुयाइयों की है और वे बाबा जी का साहित्य एवं प्रवचनों के कैसेट्स बेच रहे हैं। मैंने ASI को कहा कि उन्हें चौक के दूसरी ओर, चौहट्टा में, जहाँ काफ़ी खुली जगह थी, गाड़ी लगाकर अपना कार्य करने के लिए कहे।
ASI ने हामी भरी, सैल्यूट किया, और मैं वहाँ से अपने गंतव्य की तरफ़ चल पड़ा। मुझे ज़िलाधीश साहब के घर पहुँचे अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि मुझे ASI का फ़ोन आ गया। मुझे बताया गया कि वे गाड़ी वाले वहाँ से हटने के लिए मान नहीं रहे है। यह बात मुझे हास्यस्पद लगी। मैंने खीझ कर कहा कि उसका चालान कर दो और यदि फिर भी न मानें तो गाड़ी को पुलिस के क़ब्ज़े में ले लो। यह निर्देश दे कर मैं निश्चिंत होकर अन्य अतिथियों के साथ बातचीत में व्यस्त हो गया।
लगभग साढ़े दस बजे जब हम रात्रिभोज कर ही रहे थे, फ़ोन की घंटी घनघना उठी। DC साहब ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ़ से किसी ने पूछा कि क्या उनके घर SP साहब उपस्थित है? DC साहब ने मेरी और देखा और कहा कि माननीय मुख्यमंत्री आप से बात करना चाहते हैं, और उन्हों ने फ़ोन मेरी ओर सरका दिया। मुख्यमंत्री महोदय ने मुझे बताया कि उन्हें अभी अभी श्री आसाराम बापू का फ़ोन आया है, जिन्होंने शिकायत की कि मंडी पुलिस के एक अधिकारी ने उनके वाहन को बलपूर्वक थाना ले जाकर खड़ा कर दिया है। इसके अतिरिक्त बाबा जी ने यह भी कहा कि उनके आदमियों के साथ पुलिस ने मारपीट की है।
मैंने मुख्यमंत्री महोदय को घटनाक्रम का विवरण दिया कि किस प्रकार वह वाहन यातायात को अवरुद्ध कर रहा था। यह भी बताया कि मैंने ही संबंधित ASI को उक्त वाहन को वहाँ से हटवाने और अवज्ञा की स्थिति में चालान करने के आदेश दिए थे। जहाँ तक वाहन को पुलिस के क़ब्ज़े में लेने और लोगों से मारपीट का प्रश्न है मैं संबंधित अधिकारियों से पूछताछ करके ही सूचित कर पाऊँगा।
तदोपरांत मैंने पुलिस स्टेशन में थानाध्यक्ष (SHO) से फ़ोन द्वारा सच्चाई जाननी चाही। मुझे बताया गया कि आसाराम बापू के लोगों ने चालान के बाद भी वाहन को वहाँ से हटाने के लिए मना कर दिया था। इस प्रकार पुलिस को विवश होकर वाहन को पुलिस के क़ब्ज़े में लेना पड़ा और उसे थाना में खड़ा कर दिया गया। इस प्रकरण में न तो किसी को गिरफ़्तार किया गया था और न ही किसी के साथ मारपीट की गई।
मुझे थानाध्यक्ष की व्याख्या विश्वसनीय
प्रतीत हुई क्यों कि ASI संतराम को वैधानिक कार्रवाई करने के लिए तो मैंने ही कहा था
और मैं यातायात बाधित होने का स्वयं प्रत्यक्षदर्शी था। मैंने उसी समय मुख्यमंत्री
महोदय को टेलीफ़ोन पर बताया कि उपरोक्त वाहन को पुलिस क़ब्ज़े में लिया गया था क्योंकि
वह यातायात को बाधित कर रहा था। यह भी बताया के इस प्रकरण में किसी को गिरफ़्तार नहीं
किया गया है और मेरा अनुमान है कि मारपीट करने के आरोप भी तथ्य हीन है। पूरी सच्चाई तो जाँच के बाद ही सामने आ सकती है।
यदि मुख्यमंत्री जी चाहें तो इस प्रकरण में किसी अधिकारी द्वारा जाँच के आदेश पारित
कर दिए जाएँगे।
मुख्यमंत्री महोदय से बातचीत के दौरान मुझे आभास हुआ की संभवत: बापू आसाराम से उनकी दोबारा बातचीत हुई है। उन के स्वर में इस बार कुछ सख़्ती थी और कहा कि आप उपरोक्त ASI को फ़ौरन निलंबित कर दें और वाहन को रिलीज़ कर दें।
इस आदेश को सुन कर थोड़ी देर के लिए मैं हतप्रभ रह गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं। एक अधिकारी को, जो मेरे निर्देशानुसार ही कार्य कर रहा था, मैं कैसे निलंबित कर सकता था? मेरी अंतरात्मा इस कार्य के लिए मुझे कभी क्षमा नहीं करती।
शीघ्र ही मैंने अपने आप को संजोया और धीरे से कहा, “सर, मेरे विचार में ASI को निलंबित करना उचित नहीं रहेगा क्योंकि वह मेरे ही आदेश के अंतर्गत कार्य कर रहा था। इससे पुलिस बल में अनुचित संदेश जाएगा। जहाँ तक मारपीट का प्रश्न है इस पर कोई निर्णय उचित जाँच के बाद ही लिया जा सकता है। यदि आप चाहें तो ये जाँच किसी मैजिस्ट्रेट द्वारा भी करवाई जा सकती है।"
मुख्यमंत्री महोदय ने थोड़ी देर सोचा और
कहा, “मुझे भी मारपीट के आरोप तथ्यहीन लग रहे हैं। लेकिन श्रद्धेय आसाराम जी को भी
संतुष्ट करना आवश्यक है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?" थोड़े अंतराल के बाद
फिर बोले, "अच्छा ऐसा कीजिये कि कल ASI को लाइन के लिए स्थानांतरित कर दें और
सच्चाई उजागर करने के लिए अपने उपाधीक्षक (DSP) से fact-finding इंक्वायरी करवा लें।
“ठीक है सर"
"इसके बाद आप बापू आसाराम जी को एक
पत्र लिखकर, की गई कार्यवाही से अवगत कर दें और इस प्रकरण के लिए खेद व्यक्त कर दें।
मेरे विचार से अभी के लिए इतना काफ़ी है।"
मुख्यमंत्री महोदय के आदेश का अंतिम भाग मुझे अनुचित लगा लेकिन विवशता थी। इस के अतिरिक्त कोई चारा न था। मेरी 'यस सर' के साथ ही फ़ोन कट गया। CM साहब ने ASI के निलंबन पर मुझे विवश नहीं किया यही बहुत था वरन् राजनेता अपनी हठधर्मिता के लिए जाने जाते हैं।
रात्रिभोज के बाद मैं घर वापिस आ गया।
पूरे रास्ते में सोचता रहा कि कोई व्यक्ति इतना ऊँचा स्थान प्राप्त करके भी अपने स्वार्थ
के लिए इतना नीचे कैसे गिर सकता है। वे तो संत हैं, उनके लाखों अनुयायी हैं। उन्हें
तो सांसारिक वस्तुओं से मोह होना ही नहीं चाहिए। लेकिन फिर भी उनका अहंकार इस छोटी
सी घटना के लिए राज्य के मुख्यमंत्री को फ़ोन करके कार्यवाही की माँग करने से नहीं
चूका। मुझे याद है कि उन्होंने इस घटना का ज़िक्र अपने किसी TV पर प्रसारित हुए प्रवचन
में भी किया कि किस प्रकार मंडी की पुलिस ने उनके आदमियों को प्रताड़ित किया जो पूरी
तरह से झूठ था।
अगले दिन मैंने ASI संतराम को पुलिस लाइन के लिए स्थानांतरित कर दिया। DSP मुख्यालय को जाँच सौंपी गई। मुख्यमंत्री जी के निर्देशानुसार, भारी मन से श्री आसाराम बापू को पत्र द्वारा "खेद" की अभिव्यक्ति भी कर दी।
डीएसपी मुख्यालय की जांच रिपोर्ट दो-तीन दिनों में प्राप्त हो गई। जिसमें मारपीट के आरोपों को पूर्ण रूप से नकार दिया गया था। मैंने माननीय मुख्यमंत्री को इससे अवगत करवाया और लगभग एक सप्ताह के बाद ASI श्री संत राम की चौकी प्रभारी के रूप में पुनः नियुक्ति कर दी।
अंततः आसाराम बापू का अभिमान और आडंबर उन्हें ले डूबा और आज उनका जीवन जेल की चारदीवारी के अंधकार में व्यतीत हो रहा है।