प्रशिक्षु डॉक्टर द्वारा आत्महत्या
अगले दिन, ऑफिस पहुँचा तो एसएचओ द्वारा भेजी गए फाइल मेरे मेज पर पड़ी थी। मेरी उत्सुकता चरम सीमा पर थी। फाइल में डा० सुरेश द्वारा आत्महत्या से पहले लिखा गया 16 पृष्ठों का नोट, टैग कर के रखा गया था। मैंने ध्यान पूर्वक पढ़ा। आत्महत्या से पहले कोई व्यक्ति इतना कुछ लिख सकता है? मेरी बुद्धि चकरा गई। कितने गंदे शब्दों का प्रयोग किया गया था! मैं दंग था। मृतक में पोर्न साहित्य का रचनाकार बनने के गुण प्रचुर मात्र में थे। उसकी कहानी के सभी पहलुओं को अच्छे से दिमाग में बिठाने के लिए मैंने उसे बारम्बार पढ़ा।
इक्कीस वर्ष बाद, मैं इस
घटना के विवरण को लिखने बैठा हूँ। इतने लंबे अंतराल तक उक्त नोट में लिखी गईं
बातों को स्मरण रखना मेरे लिए लगभग असंभव था। इस संदर्भ में सीबीआई अधिकारियों ने
मेरी स्मृति को ताज़ा करने में मेरी सहायता की। अतः मैं पहले सूइसाइड नोट में मृतक
द्वारा लिखी गई बातों का वर्णन करूंगा। यहाँ बताना अप्रासंगिक नहीं होगा कि
हालांकि मैं प्रथम पुरुष में कहूँगा, लेकिन शब्द और व्याख्या मेरी ही है।
तत्पश्चात हम इस के मनोवैज्ञानिक, एवं वैधानिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे। हाँ, उस
में वर्णित कुछ घृणित शब्दों और घटनाओं का वर्णन करना उचित नहीं होगा फिर भी मेरा
प्रयत्न रहेगा कि मैं प्रबुद्ध पाठकों तक मृतक के अभिप्राय का बोध करने में सफल
होऊँगा।
सूइसाइड नोट में मृतक ने
लिखा था कि ‘मेरा जीवन आरंभ से ही उथल-पुथल भरा रहा। मेरी मां पढ़ी लिखी थी, BA
पास थी। लेकिन न जाने तकदीर कहाँ
से लिखवा के लाई थी। शादी की, तो लगभग अनपढ़ आदमी से। निठल्ला व शराबी था मेरा बाप।
छोटी-छोटी बातों पर, या कभी शराब के लिए, मां को बेदर्दी से मारता था। ससुराल में
पहुंचते ही माँ के गहनों पर उस की सास ने कब्ज़ा जमा लिया। मेरी माँ यह अन्याय और
मार पीट से अकेले ही लड़ती रही। उस के स्थान पर कोई और होती तो कब की शराबी पति को
छोड़ कर भाग गई होती। लेकिन उस ने कभी हार नहीं मानी। अन्याय का सामना असामान्य
साहस से करती रही।’
‘बहुत मेहनत के बाद माँ ने
अपने पति को किराये के अलग घर में रहने के लिए मना लिया। लेकिन यहाँ भी, उस के साथ
मार-पीट में कोई कमी नहीं आई। सास व ननद इत्यादि वहाँ आ कर भी झगड़ा करने से नहीं
चूकते। किसी तरह उस ने अपने रिश्तेदारों की मदद से, पति के लिए एक पुरानी गाड़ी ले
दी जिस से घर की कुछ आमदनी होने लगी। स्वयं भी उस ने एक ब्यूटी-पार्लर खोल लिया
जिस के लिए, उस ने एक परिचित के साथ पार्ट्नर्शिप कर ली थी।’
‘माता-पिता दोनों कमाने
लगे थे, जिस से परिवार की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ। लेकिन इस से परिवार
में लड़ाई झगड़ा व मार पीट में कोई कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी हो गई। अब तो सभी मेरी
माँ को बदनाम भी करने लगे कि उस ने पार्लर पार्टनर से शारीरिक सम्बन्ध भी बना लिए
हैं। इस सब का सामना वो निरीह महिला अकेली करती रही। कितने दुख की बात है कि उसका
प्यारा बेटा भी, इस मामले में, परिवार वालों का साथ देता रहा। थोड़ा बड़ा होने पर
मैंने महसूस किया कि उस पर झूठे आरोप लगाए जा रहे थे।’
‘जब मैं पाँच-छह वर्ष का
था, तो मेरी छोटी बुआ मेरे साथ कुकर्म करने का प्रयत्न करने लगी। वह मेरे जीवन की
पहली लड़की थी। मुझे बहुत दर्द होता था और
जब में दर्द से चिल्लाता था मेरा मुंह बंद कर देती थी। मुझे याद है कि एक बार
मैंने माँ को बताया कि मेरे दर्द होता है तो वह मुझे अस्पताल ले गई जहां मेरा
सर्कमसीजन किया गया।’
‘सात आठ साल का हुआ तो
मेरे चाचा की लड़की हमारे घर खेलने आती थी।
वह मुझ से बड़ी है। कुछ ही दिनों में उस ने मेरे होंठों पर चुंबन करना आरंभ
कर दिया। लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगता था।’
‘मेरी ज़िंदगी में तीसरी
लड़की थी प्रेमा (काल्पनिक नाम)। वह मेरी मौसी की बेटी है और मेरी हम-उम्र है। हम
अक्सर मामा के घर जाते थे और खेलते थे। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पसंद करने लगे और
एक दूसरे का चुंबन करने लगे। अब मुझे यह अच्छा लगने लगा था। मुझे लगता था कि मैं
उस से विवाह कर लूँगा। यह सिलसिला 19 वर्ष की आयु तक चला। फिर मैंने देखा कि
प्रेमा के और भी दोस्त थे जिन के साथ उसका ऐसा ही व्यवहार था। मुझे असीम दुख हुआ
और मैने निश्चय किया कि मैं उस के साथ विवाह नहीं करूंगा।’
‘एक अधेड़ औरत हमारे घर काम
करने आती थी। अपनी चुन्नी उतार कर मेरे मेज पर इस तरह से पोचा लगाती थी, कि मैं उस
की छाती देख सकूँ। उस के साथ गंदी बातचीत तो हुई, लेकिन मैं इस से आगे नहीं बढ़ा।
मेरे दोस्त ने, जो अब एयरफोर्स में है, उस के साथ एक-दो बार संभोग किया। मेरी माँ
के पार्लर में काम करने वाली एक लड़की भी मुझ पर डोरे डालने लगी। उस के मुंह से बड़ी
दुर्गंध आती थी, अतः मैंने उस को बढ़ावा नहीं दिया।’
‘मेरी माँ की मेहनत एक दिन
रंग लाई और मैंने PMT क्लियर
कर लिया। मैं पढ़ाई में ठीक था। मैंने मेडिकल कॉलेज (शिमला) ज्वाइन कर लिया। वहाँ
मैं सुषमा, सुषमा वर्मा (काल्पनिक नाम) को मिला। पहली बार मैंने उसे गेटी थियेटर
में एक नाटक के मंचन पर देखा। कितनी सुन्दर और भोली लग रही थी। मेरा दिल मचल गया
और मैंने ठान लिया कि मैं उसी को जीवन-संगिनी बनाऊँगा। उस को मनाने में दो साल लग
गए। वो इतनी मेहनत की यथार्थ में हकदार थी।’
‘मेरी बर्बादी का सफर यहीं
से शुरू होता है। प्रोफेसर मलिक (काल्पनिक
नाम) एक बहुत ही कमीना आदमी है। जिस किसी से भी उसे खुंदक हो, उसे खुले तौर पर
कहता है कि फेल कर दूंगा। वैसे वो पढ़ाने में अच्छा है, लेकिन क्लास में ज्यादातर
सेक्स ही डिस्कस करता है। विद्यार्थियों से शराब लाने को कहता है और उन से पैसे भी
माँगता है। उसे खुश रखने के लिए छात्रों को उस कि मांगें माननी पड़ती हैं। यहाँ तक
कि स्टूडेंटस एसोसिएशन को, होटल में पार्टी देने को कहता है, जिन्हें मानना पड़ता
है। पार्टी में वह प्रिन्सपल और अन्य प्रोफेसरों को भी निमंत्रित करता है ताकि उस
का रोब बना रहे। मैंने उसकी कुछ अनुचित मांगों को मानने से मना कर दिया और उस ने मुझे फेल कर दिया।’
‘बर्बादी के सफर का दूसरा
झटका मुझे सुषमा ने दिया....। अचानक तुमने मुझ से मिलना बंद कर दिया। तुमसे इतनी
बेवफाई की उम्मीद नहीं थी। मैंने तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार किया। तुम उस
फौजी के बेटे, जो तुम्हारे साथ गेटी थिएटर में फेशन शो में तुम्हारे साथ था, के साथ
आने जाने लगी। तुम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। मैं शराब और सिगरेट पीता था। अब
तुम्हें मेरे मुंह से बदबू आने लगी। मैं तो तुम से विवाह करना चाहता था।’
‘इन बातों से मैं बहुत
डिप्रेस्ड रहने लगा, और 31 दिसंबर 1998 को अपने घर करनाल चला गया। लेकिन वहाँ भी
दर्द ने दामन नहीं छोड़ा और मैं वापिस शिमला आ गया। मैंने सुषमा से मिलने कि कोशिश
की, लेकिन सफल न हो सका। मैं उस के बाप से
भी उस के घर पर मिला। सुषमा ने तो मुझे पहचानने से ही इनकार कर दिया और उस के बाप ने मुझे धक्के मार के बाहर निकाल दिया।’
‘मैं घायल सांप कि तरह
फुफकारता हुआ हॉस्टल पहुँचा। कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करूँ। सुषमा से
बदला लेने की नियत से मैंने तृतीया वर्ष
की एक छात्रा, को गर्ल-फ्रेंड बनाया। मेरे अंदर के शैतान ने उसका शारीरिक शोषण भी
किया, लगभग 25 बार। फिर भी मेरे दिल की आग शांत नहीं हो रही।’
‘इसी बीच प्रोफेसर मलिक और सुषमा के बाप, शमशेर वर्मा (काल्पनिक
नाम), ने मेरे विरुद्ध हाथ मिला लिए। बर्मा ने मलिक को बोला कि मैंने उसके (मलिक) के बेटे को मारने की सुपारी दी है। प्रो०
मलिक ने मेरे ऊपर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया और मुझे बदनाम करने की कोशिश की।
दोनों ने यह बात फैलाई कि डा० सुरेश के अपनी मौसेरी बहन प्रेमा से अवैध सम्बन्ध
हैं और उस का बच्चा मेरे से है।’
‘मेरा मन संसार से भर गया
है ………! SORRY MUMMA…’
इन शब्दों के नीचे उसने अपने हस्ताक्षर किए हुए थे और दिनांक 20-8-99, 1.00 AM अंकित किया हुआ था और अंग्रेजी में लिखी हुई, अंतिम पंक्ति थी:
“I hate you Shimla…..”
यह नोट हस्तलिखित था और 15 पृष्ठों में था।
सोलहवें पन्ने पर 25-30 लोगों की सूची थी, और अंत में मृतक ने लिखा था कि इन लोगों
से उस नोट में दिए गए तथ्यों के बारे में पूछताछ की जानी चाहिए। और अंत में लिखा
था कि उसकी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी।
सूइसाइड नोट को पढ़ने के बाद मैं काफी समय इस बारे
में सोचता रहा। मेरे मन में सहानुभूति, क्रोध, घृणा के मिश्रित भाव आते-जाते रहे।
मेरे सम्मुख प्रश्न यह था कि क्या इस नोट में इंगित लोगों को अपराधी माना जाना
चाहिए और उन के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही होनी चाहिए या नहीं? मृतक का मानसिक
ताना-बाना चाहे जो भी रहा हो, इन लोगों के कारण एक जान चली गई, एक होनहार जीवन का
अंत हो गया, एक माँ के सपने चकना चूर हो गए और उसका एकमात्र सहारा छिन गया। दोषी
तो वे हैं ही, लेकिन प्रश्न वहीं था कि क्या वे आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराधी
हैं या नहीं।
(क्रमशः ... )
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